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Showing posts from 2018

प्रगति के पथपर wrote by junaid bohra

प्रगति के पथ पर इंसान कब रुका है? पर न जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है जिस लट्टू को सारा दिन घुमाते न थकते थे आंगन में, जिस मिट्टी में सारा दिन कभी कबड्डी खेली है, वह लट्टू हो गया लुप्त आ गए फिजित स्पिनर हाथों में, मिट्टी में कबड्डी की जगह मोबाइल  की पब्जी ने ले ली है जिस चबूतरे पर बैठकर देर तक बातें किया करते थे, घंटों जहां दोस्तों के साथ कभी टाइम पास किया है, अब वहां महफिले नहीं सजती , सजता है तो सन्नाटा, व्हाट्सएप में ग्रुप वीडियो कॉल का फीचर जो दिया है याद शक्ति कम हो गई धीरे-धीरे इंसानों की, फोन में जो सारी यादों को संजो कर रखा है, प्रगति के पथ पर इंसान कब रुका है? पर ना जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है. लेखक - जुनैद वोहरा निवास - गुजरात 

वो लड़की - wrote by Author Pawan Singh

वो लड़की जो मेरी परिभाषा में नही बंधी ख्यालात पंछियों की तरह है उसके हसीन नही है वो श्यामली रंग की हसीना देखी है क्या कभी वो लड़की..... वो लड़की जो अनमोल अंगूठी है या उसमे लगा नगीना कोई छोटे बाल, प्यारी मुस्कान और मृगनयनी सी हसीना कोई वो लड़की जो समझने लगी है मुझे मुझसे ज्यादा आजकल क्या देखी है किसी ने ऐसी हसीना कोई वो लड़की....... वो लड़की जो मेरी हर बात को बड़ी ध्यान से सुनती है जो सब मे अच्छाई ढूंढती है जिसे नाचना घूमना अलग संस्कृति में जुड़ना पसंद है वो लड़की जिसे हर बात पर अरे बाबा कहना पसंद है तो लगता है जैसे मेरा दिल धड़कने लगा हो मानो जैसे चाँद भी आसमान में सरकने लगा हो क्या देखी है किसी ने ऐसी लड़की कोई वो लड़की Wrote by Author Pawan Singh Sikarwar

Adventure of Karun Nayar | offical Book teaser | Author Pawan Singh

कविता - बस उस परिंदे को देखना अच्छा लगता है wrote by Pawan Singh Sikarwar

कविता  -   बस उस परिंदे को देखना अच्छा लगता है Wrote By Pawan Singh Sikarwar Copyright by Sikho Foundation आज कल अकेला रहना अच्छा लगता है।  ना किसी से कोई शिकायत और ना ही किसी से उम्मीद  बस अपने आप में मग्न रहना अच्छा लगता है लगता है मानो कोई परिंदा आजाद हो गया हो बस उस परिंदे को देखना अच्छा लगता है एक तरफा ही सही प्यार अभी भी हे उससे अब उसके प्यार की प्यारी यादो में खोना अच्छा लगता है  लगता है मानो वह समुन्दर की लहरों सी हो जिसे छू कर भाग जाना अच्छा लगता है आज कल बस लेटे रहना अच्छा लगता है शाम की चाय की चुस्की लेना अच्छा लगता है शायरी किताबो और कविताओं से दोस्ती भी कर ली है क्योकि अब हँस कर अपना दुःख लोगो को बताना अच्छा लगता है  लगता है मानो जिंदगी हँस रही हो मुझपर  लेकिन अब इस दुनिया में पागल कहलाना अच्छा लगता है लगता है मानो कोई परिंदा आजाद हो गया हो बस उस परिंदे को देखना अच्छा लगता है My new Book Coming Soon - NIGHTMARE DREAM OR TRUTH

सोचो अगर इस कायनात में wrote by Pawan Singh

सोचो अगर इस कायनात में रात ना होती पैसा कमाते फिर तुम सब पर वो बात ना होती अरे मशीन बन जाता वो आदम भी और इंसानियत की भी फिर शुरुआत ना होती सोचो अगर इस कायनात में रात ना होती.......2 सोचो अगर इस कायनात में औरत ना होती फिर उस आदम की भी कोई मूरत ना होती औरत है तो तुम हो वरना भगवान की भी इस ज़मी पर कोई सूरत ना होती सोचो अगर इस कायनात में औरत ना होती........2 सोचो अगर इस कायनात में प्यार न होता कोई भी फिर किसी का यार ना होता अरे नफरतों की आंधी में  फिर जीते वो जिंदगी खुदा को भी मानने को फिर कोई तैयार ना होता सोच अगर इस कायनात में प्यार ना होता....2 सोचो अगर इस कायनात में भगवान ना होता धर्म मे बंटता किसीका ईमान ना होता लेकिन कैसे जीते तुम बिना किसी उम्मीद के बिन खुदा के तो इस कायनात में ये आदम-ए-इंसान ना होता सोचो अगर इस कायनात में भगवान में ना होता Copyright © By Author Pawan Singh

Kalki logo here - download for your T- shirts and Mug etc.

This Tuesday hold your heart beat becoz Kalki meet you in webtoon comic world Just wait for it Kalki a half blood prince  and  today I Publish my kalki series logo here Download this logo for your T- shirt , Mug, etc.

Author interview by wingbizz

www.wingbizz.com/pawansingh.html#.Wv2hxt0NKMF.whatsapp Interview with Pawan Singh Sikarwar | Online Author Interview | Interview by Experts http://www.wingbizz.com/pawansingh.html#.Wv2hxt0NKMF.whatsapp

कविता - स्याही wrote by Author Pawan Singh

कविता – आज कल वो स्याही किसी दुकान में नही मिलती। - ऑथर पवन सिंह - जिसने सीता राम का नाम लिखा रावण का स्वभिमान लिखा लिखी जिसने कृष्ण लीला कर्ण का बलिदान लिखा जिसने वेदो का ज्ञान लिखा आध्यत्म और विज्ञान लिखा लिखा जिसने कृष्ण की उदारता उसने अर्जुन का बाण लिखा अब उस सत्यवादी हरिश्चंद्र की सच्चाई नही मिलती आज कल वो स्याही किसी दुकान में नही मिलती जिसने गांधी का स्वदेश लिखा गीता का उपदेश लिखा लिखा राधा का प्रेम जिसने उसने महादेव महेश लिखा जिसने अल्लाह और भगवान लिखा उसने ये इंसान लिखा लिखा चन्द्रगुप्त हथियार जिसने उसने ही पोरस महान लिखा अब उस खुदा की खुदाई नही मिलती आज कल वो स्याही किसी दुकान में नही मिलती जिसने गौतम बुद्ध लिखा हल्दीघाटी का युद्ध लिखा लिखी जिसने वीरो की गाथा उसने महाराणा रुद्र लिखा जिसने टीपू सुल्तान लिखा झांसी का सम्मान लिखा लिखा जिसने भगत का कलाम उसने सुभाष का मान लिखा अब इन वीरो की परछाई नही मिलती आज कल वो स्याही किसी दुकान में नही मिलती जिसने दिनकर का राष्ट्रवाद लिखा निराला का संवाद लिखा लिखा जिसने कुमार के विश्वास को उसने मुंशी

Support for ASIFA poem by Author Pawan

कविता – आज मैने सभ्य समाज में असभ्यता देखी है। फिर एक बेटी को रौंदा कुछ बेहशी दरिंदो ने क्या गलती की थी? उन नन्हें परिंदों ने धर्म की आड़ में फिर कुछ मुजरिम छूट रहे है आज फिर एक बच्ची की माँ के आँशु फुट रहे है आज भगवान के घर में भी मैने वीभत्सता देखी है सभ्य समाज मे मैने आज असभ्यता देखी है  अभी कुछ मत बोलो क्योंकि राजा सो रहे है चुनाव के लिए फिर कुछ दंगे बो रहे है इस लोकतंत्र मै कौन उस माँ को न्याय दिलाएगा कौन उस बाप को अब अब्बू कह कर बुलायेगा यह दाग नही है सिर्फ मुसलमान पर  यह तो घाव है पूरे हिंदुस्तान पर आज मैने रोते बिलखते मानवता देखी है  सभ्य समाज मे मैने आज असभ्यता देखी है  लेकिन फिर कुछ लोग इसे सम्प्रदायिकता में तोलएंगे फिर कुछ लोग बिकाऊ मीडिया की भाषा बोलएंगे आज फिर मैने पनपनती अराजकता देखी है  सभ्य समाज मे मैने आज असभ्यता देखी है  छोड़ ये मर्यादा रूप और काली का अवतार कर ऐसे दानवो का तू देवी नरसंहार कर  दिखा दे कि स्त्री कमजोर नही है इस असभ्य समाज के लिए औरत भी हथियार उठा सकती है अपने स्वभिमान के लिए  आज अपने ही बच्चों से डरती मैने भारतमाता द

कविता - सच कह रहा हु मै शायर नही हु बस लोग कहते है

कविता – सच कह रहा हु मै शायर नही हु बस लोग कहते है। जिसे चाहता हु अपने ख्यालो में वो ख्वाइस हो तुम जिसे तराशा था अपने सपनो में उन सपनों की नुमाइश हो तुम पता नही इश्क़ में  लोग क्या क्या सहते है सच कह रहा हु मै शायर नही हु बस लोग कहते है....2 इश्क़ के दरिये में गोते जाने कितने लगाते है नीलकंठ सा जहर जाने कितने पाते है। आज कल वो आशिक़ मोहब्बत में रहते है सच कह रहा हु मै शायर नही हु बस लोग कहते है...3 आज कल प्रेम में मीरा की भक्ति कँहा कृष्ण को प्रेमवश में करने वाली  वो राधा में शक्ति कँहा प्रेम के आगे तो भगवान भी ढहते है सच कह रहा हु मै शायर नही हु बस लोग कहते है। Copyright © By Wrote by Author Pawan Singh Sikarwar

कविता - हाँ मै हवा हुँ write by Author Pawan Sikarwar

कविता –  हाँ मै हवा हु मै चंचल हु मै स्थिर भी हुँ मै दयावान के साथ  मै निष्ठुर भी हु हल्का हु मै  भारी भी हु इस कायनात की सारी कहानी भी हु क्योंकि हाँ मै हवा हूँ । मेरा रूप विकट विशाल है मेरे रूप में अनेको मनुष्यो का जाल है। मेरा ही अंश था भीम - महान और लंका को जलाने वाला मेरा वीर पुत्र हनुमान तेरे जीवन का सार मै हु तेरी सांसो का मायाजाल मै हु  क्योंकि हाँ मै हवा हु पवन मै हु  समीर मै हु नदी किनारे दोहे गावत कबीर मै हु युद्ध मे लड़ने वाला वो वीर मै हु प्रेमी को प्रेमिका से बाँधने वाला वो प्रेम तीर में हु हाँ मै हवा हु तेरी बढ़ती सोच मै हु हिमालय पर लगी खरोंच मै हु गीता का ज्ञान मै हु नवजात शिशु सा अज्ञान मै हु माँ की ममता का आँचल मै हु गंगा के पवित्र जल सा  निश्छल मै हु हाँ मै हवा हु  पूर्व मै हु पश्चिम मै हु उत्तर मै हु दक्षिण मै हु अशोक का बढ़ता सम्मान मै हु उस चाणक्य नीति का अभिमान मै हु वीर महाराणा का चेतक मै हु कृष्ण के चरणों की मस्तक मै हु संसार में दहाड़ता सिन्ध मै हु विश्वगुरु बनता हिन्द मै हु  हाँ मै हवा हु सभी व्यख्यान की परिभाषा

कविता - वाह जनाब क्या शायरी थी wrote by Author Pawan Sikarwar

कविता – वाह जनाब क्या शायरी थी ।  लेखक - पवन सिंह सिकरवार ये इश्क़ नही था उसका ये तो उसकी अख़्तियारी थी कागज पर लिखे मैने उल्टे सीधे शब्द लोगो ने कहा वाह जनाब क्या शायरी थी .....२ मोहब्बत का पर्दा अब बेपर्दा हो गया बिन आग के लगी वो चिंगारी थी अब कैसे करूँ बयाँ अपना दर्द मोहब्बत सी लगने वाली ये कोई उम्रदराज बीमारी थी कागज पर लिखे मैने उल्टे सीधे शब्द लोगो ने कहा वाह जनाब  क्या शायरी थी....३ कृष्ण रंग की मृग थी वो या वो राधा नाम सी प्यारी थी शायरी सी सच्ची थी वो और कविताओं सी संस्कारी थी कागज पर लिखे मैने उल्टे सीधे शब्द लोगो ने कहा वाह जनाब क्या शायरी थी.....४ Write By © Author Pawan Singh Sikarwar

कविता - देखो तुमने अपने हुस्न से क्या क्या पा लिया

कविता – देखो तुमने अपने हुस्न से क्या क्या पा लिया । इश्क़ का मुकद्दर इतिहास लिख गया वफ़ा में बेबफाई करने का हुनर सिख गया आशिको ने समझाया मत कर इश्क़ लेकिन कर उनको नजरअंदाज  उस बाजार में , मै भी बिक गया । तुम्हारे लिए देखो  मेने भी आग के दरिये में खुद को जला लिया देखो तुमने अपने हुस्न से आज क्या क्या पा लिया । जो अपनी माँ तक कि नही सुनता था वो तुम्हे घण्टों सुनने लगा ... दर्द – ए - इश्क़ के आलम में खुद ही घुटने लगा.... लोगो से कहता फिरता था ये ही है सच्ची मोहब्बत ओर आज उसी मोहब्बत में दर्द ढूंढने लगा.... जो गलती करने पर भी माफ़ी नही मांगता था वो तुमसे बिन गलती माफ़ी भी मांगने लगा ... और लगा कुछ गलत हो रहा है, तो इस दिल ने मेरे दिमाग को भी समझा लिया  देखो तुमने अपने हुस्न से आज क्या क्या पा लिया । मोहब्बत और मौत, हे दोनों एक जैसी ही दोनों ही तुम्हे तुम्हारे अपनो से दूर कर देती है। ये हुस्न की परिया तुम्हे इश्क़ में मगरूर कर देती है। में तो कहता हूं करो इश्क़, पर सच्चा नही वादे भी करो , पर पक्का नही माँ, पापा हो या कोई ओर जिसने भी मना किया सभी को मेने तेरे लिये

कविता - अगर बात निकली है तो बोहोत दूर तक जाएगी wrote by Author Pawan Singh

कविता – अगर बात निकली है तो बोहोत दूर तक जाएगी। राजनीति के गलियारों से राजनीति भाग गई इतिहास के पन्नो में क्रांति जाग गई योजनाए तो बोहोत सुनी लेकिन पकोड़ा योजना जैसी नही जैसा रोजगार हमे चाहिये था  ये तो वैसी नही लोकतंत्र वाली ये  नूर मुझे बड़ी भाएगी अगर बात निकली है तो बोहोत दूर तक जाएगी मेरे देश मे अंधभक्तिवाद की लहर चल रही है चार दिवारी में न्याय देने वाली आंख मीच कर सो रही है । अब पकोड़ा योजना आई है  उम्मीद की लहर बनकर  डॉक्टर इंजीनियर डिग्री वाला पकोड़ा बेच रहा है प्रधानमंत्री पकोड़ा योजना से जुड़कर। इस सरकार में सच बोलने वाले कि सामत आएगी अगर बात निकली है तो बोहोत दूर तक जाएगी ऐसी सरकार से तो हम अब आशिक़ी कर बैठे रोजगार की उम्मीद छोड़ एक सवाल कर बैठे क्या इस योजना मे भी  उन लोगो को आरक्षण मिलएगा जिंदगी की इस दौर में क्या ? जनरल यंहा भी रोएगा राजनीति इतिहास में यह योजना हमे फिर भी रुलायेगी अगर बात निकली है तो बोहोत दूर तक जाएगी बेरोजगारी को क्या बेहतरीन छुपाया है पकोड़े बेचने को भी कला बताया है यह सरकार की राजनीति नही यह तो एक छुरी थी अगर इसको ही रोजगार कह

Book - scripts EVOL - love teda hai writer by Pawan singh

Script on EVOL – love teda hai दरवाजा खुलता है ... मनीश अपने सोफे पर बैठ कर TV पर क्रिकेट का मैच देख रहा था तभी दरवाजे से उसका दोस्त अंदर आता है । तू यंहा मैच देख रहा है ? तो क्या करूँ तेरे ऊपर नाचूँ साले मेरा मतलब है कि तेरा सोनिया का क्या ड्रामा है रोज का ? बात क्यो नही कर रहा है तू उससे? ड्रामा साले ड्रामे से याद आया कि तेरी वाली केसी है ? Sixer ..... crowd noise बात मत पलट तू पहले बता क्या सीन है? सीन तो सुन ....  भाई तुझे पता लड़कियों का लड़की होना ही एक बहुत बड़ा सीन है इनके दिमाग की तू क्या भगवान भी नही समझ सकते ...तभी तो कहते है कि इन्हें तो भगवान भी नही समझ सकता इन लड़कियों को भगवान ने धरती पर भी इसलिए भेजा है कि वो चाहते है कि तुम अगर समझ जाओ तो मुझे भी बता देना। Sixer .....crowd noise लड़कियों को अगर सॉरी बोलो तो कहएगी की सॉरी मत बोलो न बेबी हम दोनों तो gf bf है सॉरी अच्छा नही लगता है लेकिन अगले दिन ही तुमने कोई भूल करदी तो बस चिल्ला कर कहएगी की तूने तो अभी तक सॉरी भी नही बोला मुझे i hate you Sixer ...noise crowd लड़का बेचारा पूरे हफ्ते पैसे इक्कठे करता है

कविता - ये तो मेरी पुरानी आदत है wrote by Author Pawan Singh

कविता – ये तो मेरी पुरानी आदत है। बात बात पर उससे रुठ जाना उसके मनाने पर भी नही मानना उसकी आँखों में देख कर कहना की में तुझे कभी नही छोड़ कर जाऊंगा लेकिन काम आने पर  उसको छोड़ भाग जाना । पता नही ये कौनसी शहादत है लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है उसकी झुलफो के साथ खेलना और उसे बात बात पर चिढ़ाना प्यार की बाते करते करते एक दम से हँसना उसको रुला कर फिर हँसा देना उसकी आँखों मे ज्यादा देर तक देखते रहना और मेरी इस हरकत से उसका शर्माना पता नही ये कौनसी रुआदत है लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है लेट आकर उससे माफी मांगना फ़ोन पर रात भर उसको जगाना फ़ोन रखने वाली हो तो कहना दो मिनट ओर फिर उस दो मिनट में उसे आई लव यू कहलवाना पता नही ये कौनसी इबादत है लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है। Wrote by © Author Pawan Singh

कविता - कोरे पन्ने write by Garima Jahangirpuri

कविता - कोरे पन्नें............. कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते है किसी से न कहे थे जो वो शब्द इन पन्नों में बांध गए है, महज पन्नें नहीं हैं ये सदियों पुरानी कहानी कह देते हैं इसलिए तो.... कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं। महज़ किताबों के पन्नें ही नहीं ज़िंदगी के पन्नें भी रोज़ पलटते हैं, रोज़ कुछ नए, अनजाने चेहरे मिलते हैं न वो याद रखते हैं, न हम उन्हें याद करते हैं मिलकर आगे चल देते हैं, और ज़िन्दगी के.... कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं। जाने अनजाने चेहरे आस-पास रहते हैं हँसी-ठाके उन्हीं के साथ करते हैं, फिर क्यों? उस भीड़ में भी हम अकेले रहते हैं, और आखिर में.... कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं। कुछ अनजान सहारे अपना हाल बता देते हैं पल भर के लिए वे अपने रहते हैं फिर जाने किस ओर रुख मूड लेते हैं, भूल से याद आने पर इन पन्नों पर ही वापस मिलते हैं, तभी तो हम.... कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं।

कविता - भारती हु -- Author Pawan Singh

कविता – भारती हु.....। में खुशियां मना रहा हु ,   बेरोजगारी का गरीबी का  भुखमरी का  समाज के साथ हो रहे भेदभावों का, में इन सब खुशियों का पार्थी हु में क्या बोलू जनाब  में तो भारती हु। बुराइया हमारी है लेकिन सरकार इसको मिटाये ...2 कानून, लोकतंत्र , सँविधान द्वारा थोडा चमत्कार करके दिखाए में भारत का नागरिक हु ओर में ही इस अधर्म का सारथी हु में क्या बोलू जनाब में तो भारती हु लेकिन समाज अब एक हो रहा है । हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई अब भाई- भाई हो रहा है..2 इन कृतियों का सिर काटने वाला में ही दुराती  हु में क्या बोलू जनाब में तो भारती हु © Author Pawan Singh Sikarwar Happy republic day all of you  Love always make good society  good society always make good government Good Government always make good country

कविता - सृष्टि और इंसान write by Garima Jahangirpuri

कविता - सृष्टि और इंसान शुरुआत हुई सृष्टि की वह इंसान बन गया, असभ्य था वह तब भी खुद को आज भी न सभ्य कर सका, कपड़े नहीं थे तन पर लेकिन भावों को समझने लगे.... आज हो गया वह आधुनिक और भाव सबके मरने लगे, दुनिया की इस भीड़ में जाने क्या वह तलाशता कुछ हाथ नहीं आया जो था वह भी गवाया, सफलता की तलाश में वजूद अपना खो दिया.... अंत में ठगा सा और थका सा रह गया, था तब भी अकेला और आज भी अकेला रह गया, वह इंसान तो बना पर इंसानियत न निभा सका, मशीनीकरण के युग में वह मशीन बन गया, भाव रहे न उसमे बस शून्य रह गया बस शून्यरह गया....

कविता - वजूद खो दिया

कविता – वजूद खो दिया आज में एक नए शहर में आया,  जिसमे मेरी कोई पहचान नही लोगो से मिला बहुत , लेकिन किसी भी तरह का सम्मान नही मतलब की है ये दुनिया जानकर , आज में रो दिया ...२ देखो जानब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२ आंखों में कुछ सपने थे मेरे , जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए..२ बड़े शहर में आया था , अपनी पहचान बताने के लिए बिस्तर तो कंही मिला नही यंहा , तो जाकर फुटपाथ पर ही सो लिया देखो जनाब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२ उम्र छोटी थी लेकिन मजबूत थे इरादे , सबसे की गुहार मैने ,करने पूरे अपने वादे लोगो को दिखाई अपनी कला और जंजीरो को तोड़ दिया देखो जनाब आज मैने , अपना वजूद खो दिया ...2  मेरा सपना आज बिखर गया, शहरी पथराव में निखर गया...२ आज मेरा सपना भी , मेरी आंखों से ओझिल हो लिया देखो जनाब आज मैंने , अपना वजूद खो दिया ...२ Write by Author Pawan Singh

किताबे और जिंदगी written by Author Pawan Singh

मैने अपनी जिंदगी को किताबो में तब्दील कर दिया है। जो लोग मुझे जीते जी नही समझ पाए...... वो मेरे जाने के बाद इसके जरिए समझ ले। उस किताब के पन्नो में मैने अपनी यादे भी दाल दी है जिससे जो लोग मेरे लफ्ज़ो को जीते जी नही समझ पाए.....  वो मेरे जाने के बाद इसके जरिए समझ ले। इश्क़ मेने भी किया लेकिन जिसे किया उसे बता न सका। वो इश्क भी मैने इसमें दाल दिया है जिससे जो मेरे इश्क़ को जीते जी नही समझ पाए....  वो मेरे जाने के बाद इसके जरिये समझ ले एक किताब लिखी है मैने , अपनी जिंदगी से जुड़ी कुछ यादे , लफ्ज ,  इश्क़ ओर मेरी तन्हाई भी इसमें दाल दी है। जिससे जो मेरी जिंदगी को जीते जी नही समझ पाए... वो मेरे जाने के बाद इसके जरिये समझ ले Written by Author Pawan Singh

कविता - माँ पद्मावती

कविता – माँ पद्मावती लोकतंत्र आज खतरा बन गया , राजपुताना का दुश्मन बन गया सिंहासन का जिसने निर्माण किया , वो उसका आज सपना बन गया देखो माँ पद्मावती के अपमान पर, उठी राजपूताना तलवारे है जो उस मूवी का समर्थन करे , वो सब खलजी की संतानें है.....2 भूल गए वो कर्ज हमारा , जो पूरे देश पर चढ़ा हुआ है। अपनी माँ की इज्जत के लिए आज,  एक एक राजपूत खड़ा हुआ है । देखो माँ पद्मावती के अपमान पर , भड़के शोले ओर अंगारे है। जो उस मूवी का समर्थन करे वो, सब खलजी की संतानें है...2 उस दिन सँविधान तुम्हारा कँहा था, जब हमसे हमारी जमीन मांगी थी तुमने ...2 लोकन्त्र की स्थापना के लिए , अपना गुरुर दिया था हमने...1 कँहा है वो आज लोकतंत्र , और कँहा वो राजनीति के गलियारे है। जो उस मूवी का समर्थन करे, वो सब खलजी की संतानें है .....2 लोकतंत्र को बनाने वाले , अब लोकतंत्र के खिलाफ कर दिए गए जिन्होंने देश के लिए जान दे दी  , वो सपूत नीलाम कर दिए गए तैयार रहो देशवासी मेरे , राजपूत एक नई कथा दोहराने वाले है । जो उस मूवी का समर्थन करे वो सब खलजी की संतानें है....2 © This poem wrote by Author Pawan Singh Sikar

कविता - खिड़की by Pawan Singh Sikarwar

कविता - खिड़की एक दिन मेने, अपनी खिड़की खोली ठंडी हवाओं का शोर था....2 मेरी सामने वाली खिड़की में भी चाँद सा एक चकोर था। में मुस्करा रहा था, वो शरमा रही थी ..2 में अपने आप को सुलझा रहा था,  वो अपने चेहरे पर आ रही झुलफो को सुलझा रही थी मेरा दिल भी अब इश्क़- ए- दिले चोर था... 2 मेरी सामने वाली खिड़की में भी चांद से एक चकोर था.....2 में उसे देखता रहा और वो नजरें फेरती रही...2 इश्क़ का महजब आंखों ही आंखों में तोलती रही....1 वो मेरी ईद ओर में उसका दीवाली वाला माहौल था.....2 मेरी सामने वाली खिड़की में चाँद सा एक चकोर था आखिर में उसने हां कर दी, जिंदगी की एक नई शुरुआत कर दी अकेली जिंदगी में बहार कर दी, मोहब्बत से मेरी मुलाकात कर दी। वो मेरी दिल्ली और में उसका इंदौर था मेरी सामने वाली खिड़की में चाँद सा एक चकोर था। By Author Pawan Singh
कविता – अगर वो खफ़ा है तो उसे खफ़ा ही रहनदो इश्क़ मोहब्बत प्यार , अगर वफ़ा है तो उसे वफ़ा रहनदो...2 अगर उसे मेरी इस वफ़ा से भी खफ़ा है तो उसे खफ़ा रहनदो....2 इश्क़ मोहब्बत प्यार , अगर वफ़ा है तो उसे वफ़ा रहनदो...।  अगर तुझे जाना है तो जा , में तेरी यादों में भी जी लूंगा ...2 उसकी तो इन यादों में भी सफ़ा है तो उसे सफ़ा रहनदो । इश्क़ मोहब्बत प्यार , अगर वफ़ा है तो उसे वफ़ा रहनदो...1 अब वो , मेरे दिल से निकल कर दिमाग में आ गई है...2 फिर भी , वो मेरी जिंदगी से दफा है तो उसे दफा रहनदो ... इश्क़ मोहब्बत प्यार , अगर वफ़ा है तो उसे वफ़ा रहनदो...1 वो कहती थी कि, में तेरे बिन नही जी पाऊंगी...2 लेकिन अब अगर वो बेबफा है, तो उसे बेबफा रहनदो... इश्क़ मोहब्बत प्यार, अगर वफ़ा है तो उसे वफ़ा रहनदो .. अगर वो मेरी इस वफ़ा से भी खफ़ा है, तो उसे खफ़ा रहनदो । Thank you  By Author Pawan singh