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Showing posts from April, 2020

लेखक कैसे बन गया? ऑथर पवन सिकरवार

मै एक क्राइम फिक्शन लेखक हूँ और उसी मै लिखना पसंद करता हूँ क्योंकि मेरी अपराधी सोच मेरी लिखने में मदद करती है। कॉलेज के दूसरे साल तक तो मैने सोचा भी नही था कि मै एक लेखक बनूँगा या फिर लेखन में मेरी रुचि बढ़ेगी। मेरी किस्से कहानियों मे आप सभी का स्वागत है जिसका पहला अध्याय है लेखक कैसे बन गया? मुझे याद है कि स्कूल के दिनों मे किताबे पढ़ने का शौक कम ही था वरना अच्छे नम्बर आते। खैर कॉलेज में पहुंचा तो भी कोई खास बदलाव मुझमे आया नही। एक पार्ट टाइम जॉब ढूंढ ली थी और कॉलेज के बाद वंही रहता था तो पैसे की कोई दिक्कत नही होती थी मैने अपने पैसों से बाइक भी ले ली थी किश्तों पर ही सही लेकिन मेरी खुद की बाइक थी। जब कॉलेज का आखिरी साल आया तब मैंने पहली बार शेरलॉक होम्स का जासूसी उपन्यास पढ़ा फिर उसके बाद फ़िल्म फिर उसके बाद ऑथर कॉनन डॉयल की जीवनी पढ़ी उनकी इस खास रचना का सच तो जानना ही था तो एक प्रेणा मिली । मुझे भी अपना खुद का उपन्यास लिखना था सिर्फ अपनी मन की तसल्ली के लिए कोई खास किताबी मकसद कभी दिमाग मे नही आया। तीसरा अध्याय जब अपने उपन्यास का लिखा तो एक खास दोस्त से मिला उसने बताया कि म

बदनामी कि दास्तान - ऑथर पवन सिकरवार

वो जानती थी कि अगर छोड़ कर चली गई तो बर्बाद हो जाऊंगा लेकिन ये बात उसे भी पता थी कि आवारा है ये मरेगा नही लेकिन मैंने भी बर्बादी के गीत लिख दिए दुनिया को अपनी किस्से कहानियो से मदहोश कर दिया बस उसके साथ पी हुई वो चाय याद आती है उसकी डांट में छुपी वो राय याद आती है ये बीतती शाम मानो पूछ रही हो कि वो कँहा है क्या वो फिर रुठ गई या वो अपनी सहेली के यंहा है क्या जबाब दु अब इन बातों का क्या हिसाब दु इन तन्हा रातो का चासनी सी बातों से ना जाने कितने कत्ल उसने किये है दिल पर खंजर रख कर ना जाने कितने जख्म उसने दिए है जिंदगी में अब भूल चुका हूं उसे और बर्बादी की तरफ निकल चुका हूं बर्बादी को हमसफ़र चुनकर एक नए मोड़ पर निकल चुका हूँ तभी वो उस सफर पर फिर मुझे दिखाई दी किसी दूसरे का हाँथ थामे एक दर्द की चुभन चुभ सी गई फिर भी सोचा हाल चाल पूछ लेता हूँ कभी तो उसने भी मुझसे प्यार किया था तो उसका उधार चुका देता हूँ लेकिन मेरे दिल ने गवाही नही दी कहा छोड़ रास्ते पर ध्यान दे दुनिया को अपनी बदनामी का ज्ञान दे बता कैसे तेरी ही गलती से तुझसे वो अलग हुई थी बता कैसे तेरी ही हरकतों से वो बोर हुई

श्रमिक को तोहफा तो दो - ऑथर पवन सिकरवार

मुझे कुछ समय दो उस व्याध से लड़ने का श्रमिक को तोहफा तो दो यूँ ही लड़कर मरने का दीप प्रज्वलित कर सच्चाई का उजियारा फैलाना है मुझे हिम्मत करने दो ऐसा कुछ कर गुजरने का श्रमिक को तोहफा तो दो यूँ ही लड़कर मरने का सोचा था कभी एक किसान ताज पहन दिखाएगा सोचा था कभी एक मजदूर सिंहासन पर बैठ पाएगा उसे तोहफा तो दो ऐसे सपने देखने का मुझे कुछ समय दो उस व्याध से लड़ने का ऑथर पवन सिकरवार