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Showing posts from September, 2017
अधयाय 1 एक रहस्मय लाश..... 12 जनवरी 1972...जाड़े के दिन थे लीगल ग्राउंड कंपनी का चौकीदार बहादुर सिंह रात के समय धीमी आंच वाली लालटेन लिए कंपनी का मुयआना कर रहा था ...लेमपोश की जलती बुझती लाइट सड़क पर पड़ रही थी हवा का ठंडा झोंका रात की ठंड को ओर बडा रहा था पानी की बूंद नल से नीचे गिर रही थी जिसकी आवाज चारो तरफ डरवाना माहौल बना रही थी बहादुर एक दम से चोंक जाता है इतनी रात को किसकी आवाज हो सकती है मानो कोई दर्द से चिला रहा हो ऐसे आवाजे सुनकर बहादुर के भी हाँथ पाँव ठंडे हो जाते है वह अपने मन को दिलासा देते हुए कहता है लगता है कोई कुत्ता भोंक रहा है? लेकिन उसको पता है कि ये एक दम झूठा दिलासा है इसलिए वह धीरे धीरे आवाज की तरफ बढ़ने लगा कौन है ?? एकदम शान्त वह ठिठका सा खड़ा रहा अचानक वह आवाज तेज हो जाती है बहादुर आवाज की