कविता – ये तो मेरी पुरानी आदत है।
बात बात पर उससे रुठ जाना
उसके मनाने पर भी नही मानना
उसकी आँखों में देख कर कहना
की में तुझे कभी नही छोड़ कर जाऊंगा
लेकिन काम आने पर
उसको छोड़ भाग जाना ।
पता नही ये कौनसी शहादत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है
उसकी झुलफो के साथ खेलना
और उसे बात बात पर चिढ़ाना
प्यार की बाते करते करते एक दम से हँसना
उसको रुला कर फिर हँसा देना
उसकी आँखों मे ज्यादा देर तक देखते रहना
और मेरी इस हरकत से उसका शर्माना
पता नही ये कौनसी रुआदत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है
लेट आकर उससे माफी मांगना
फ़ोन पर रात भर उसको जगाना
फ़ोन रखने वाली हो तो कहना दो मिनट ओर
फिर उस दो मिनट में उसे आई लव यू कहलवाना
पता नही ये कौनसी इबादत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है।
Wrote by ©
Author Pawan Singh
बात बात पर उससे रुठ जाना
उसके मनाने पर भी नही मानना
उसकी आँखों में देख कर कहना
की में तुझे कभी नही छोड़ कर जाऊंगा
लेकिन काम आने पर
उसको छोड़ भाग जाना ।
पता नही ये कौनसी शहादत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है
उसकी झुलफो के साथ खेलना
और उसे बात बात पर चिढ़ाना
प्यार की बाते करते करते एक दम से हँसना
उसको रुला कर फिर हँसा देना
उसकी आँखों मे ज्यादा देर तक देखते रहना
और मेरी इस हरकत से उसका शर्माना
पता नही ये कौनसी रुआदत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है
लेट आकर उससे माफी मांगना
फ़ोन पर रात भर उसको जगाना
फ़ोन रखने वाली हो तो कहना दो मिनट ओर
फिर उस दो मिनट में उसे आई लव यू कहलवाना
पता नही ये कौनसी इबादत है
लेकिन ये तो मेरी पुरानी आदत है।
Wrote by ©
Author Pawan Singh
No comments:
Post a Comment