यह कहानी उन वीर योद्धाओ की है जिन्हे पुरे भारतवर्ष में जाना जाता है देशराज और बेशराज दो भाई महोबे के राजा परमाल के सेनापति थे युद्ध कौशल में नपुण होने के साथ साथ वरदानी भी थे उनके हाँथ में हथियार जब तक रहता उन दोनों को हराना सम्भव नहीं था
एक दिन दोनों भाई महोबे के बगीचे में रात को आराम कर रहे थे तभी माड़ौगढ़ के राजा जम्बे और उसके बेटे करिया ने महोबे पर आक्रमण कर दिया। उरई के राजा माहिल के भड़काने पर दोनों भाइयो को जम्बे कैद करके माड़ौगढ़ ले जाता है और उनके शरीर को कोल्हू (गुड़ बनाने वाली मशीन जिसमे गन्ना डाला जाता है) उसमे डलवा देता है और उनकी खोपड़ी को बरगद के पेड़ पर लटका देता है
देशराज की पत्नी गर्भ से थी और बिना पति के मानो टूट सी गई थी कुछ समय पश्चात् ऊदल का जन्म 12 वी सदी में जेठ दशमी दशहरा के दिन दसपुरवा महोबा में हुआ। माता देवल ने अपने बेटे को यूँही जमीन पर गिरा रहने दिया वह जानती थी जब उसके दोनों पुत्र आल्हा और उदल जब बड़े होकर उससे उनके पिता के बारे में पूछ्येंगे तब वह क्या जबाब देगी इसी शोक में बैठी माता देवल बस अपने नवजात शिशु को जमीन पर लेटा रोता हुए देख रही थी तभी वंहा महोबे की रानी मल्हना का प्रवेश होता है
मल्हना यह दृश्य देखकर कदा भी आश्चर्यचकित नहीं होती और उदल को अपनी गोद में उठाकर साफ़ करती है और उसे महल ले आती है।
बांदी जाओ और सिंहनी का दूध लेकर आओ हम इसके पश्चात् राजगुरु चिंतामणि से इसका नामकरण कराने जायेंगे।
इतना सुनते ही बांदी सेनिको से सिंहनी का दूध मंगवा लेती है और उस बच्चे को उस शेरनी का दूध पिलाया जाता है। इतिहास में माना जाता है की रानी मल्हना बड़ी बहादुर और ज्ञानी महिला थी महारानी मल्हना उस शिशु को राजगुरु चिंतामणि के सामने ले जाती है
हे राजगुरु इस बच्चे के नामकरण कीजिये इस बच्चे के बारे में बताइये ये किस प्रवृति का बालक होगा और इसका नाम क्या होगा?
महारानी मल्हना ये बालक बहुत ही पराक्रमी होगा। इस बालक की वजह से राजा परमाल का पंचम सेतुबंद से रामेश्वर तक लहराएगा और ना सिर्फ पंचम लहराएगा बल्कि इसका शौर्य 52 गढ़ो तक जाना जायेगा
यह बालक ना सिर्फ अपने पिता का बदला लेगा बल्कि माड़ौगढ़ के राजा जम्बे को कोल्हू में खड़ा खड़ा पिरवा देगा। जब तक इसके हाँथ तलवार रहयेगी तब तक काल भी इससे जीत नहीं पायेगा और यह पुरे संसार में यह उदल बनाफल राय के नाम से प्रसिद्ध होगा।
इतना सुनते ही रानी मल्हना अपना सोने के चूड़ा निकालकर राजगुरु को दे देती है और आल्हा उदल को अपने बच्चे की तरह परवरिश करने लगी उन्हें शाही घोड़ो की घुड़सवारी तलवार और अन्य हथियार के साथ साथ मलयुद्ध भी सिखाया गया। महोबा एक सम्पन्न देश था जंहा पारस की खाने थी। रानी मल्हना का एक पुत्र भी था राजकुमार ब्रह्नमा। और एक योद्धा ढेवा जो ज्योतिष विधा में निपुण था और उदल और आल्हा का चाचा लगता था लेकिन थे उन्ही की उम्र के और सिरसागढ़ के राजा के पुत्र थे मलखान जो कि उदल के चचरे भाई थे। लेकिन मलखान अपने सगे भाई से भी ज्यादा प्रेम करते थे उदल को।
शिक्षा प्राप्त करने के बाद में रानी मल्हना ने पांच अद्भुत घोड़े उन पांच वीरो को दे दिए इतिहास में इन पांच घोड़े की प्रसिद्ध आल्हा और उदल से कम नहीं थी
घोडा बेंदुला मिला उदल को और घोड़ी कबूतरी मिली मलखान को
घोडा पापिया मिला आल्हा को और मनोरथाबाज नामक घोडा मिला ढेवा को और ब्रह्नमा को मिला हरनागर नाम का घोडा।
माना जाता था की इन घोड़ो की रफ्तार इतनी तेज़ थी जैसे हवा और इनकी छलांग इतनी ऊँची होती थी जैसे ये घोड़े उड़ रहे हो।
समय बीतता है और अब उदल बारह वर्ष के हो चुके थे एक दिन अपनी बेंदुला पर बैठे शिकार के लिए गए और एक हिरण का पीछा करते करते वह अपने मामा माहिल की नगरी उरई पहुँच जाते है। और थकहार कर कुंए पर कड़ी लड़कियों से पानी का आग्रह करते है लेकिन उस समय बनाफल क्षत्रियो को निचा माना जाता था जिसके कारण उन लड़कियों ने उदल को पानी पिलाने से मना कर दिया उदल ने आवेश में आकर अपनी गुलेल से सारी मटकिया फोड़ दी।
सभी कन्याये उरई नरेश माहिल के दरबार में जाती है और परदेशी के आये हुए आंतक के बारे में बताती है माहिल तुरंत अपने पुत्र अभय सिंह को आदेश देता है
जाओ अभय सिंह उस आंतकी को पकड़ कर हमारे सामने पेश करो हम उसकी खाल उतरवा लेंगे।
इतना सुनते ही अभय सिंह अपने घोड़े पर बैठकर चार सेनिको के साथ उसी कुंए की तरफ रवाना हो जाते है जंहा कुंए से उदल पानी निकालकर अपने घोड़े बेंदुला को पीला रहा था कुंए की तरफ सेनिको को आते हुए देखकर उदल तुरंत अपनी तलवार निकाल लेता है और सेनिको के सामने खड़ा हो जाता है।
सैनिक उदल की तरफ छापता मारते है लेकिन उदल अपनी तलवार से एक ही प्रहार से चारो सेनिको के सर काट देता है जिससे देखकर अभय सिंह गुस्से में उदल पर प्रहार करता है और लड़ाई में दोनों की तलवार छूट जाती है उदल तुरंत ही अभय सिंह को गिरा लेता है और दोनों उसकी भुजाये तोड़ देता है और घोड़े पर डालकर महल की तरह बड़ा देता है।
माहिल सपने पुत्र का ये हाल देखकर आग बबूला हो जाता है और तुरंत ही सेना की टुकड़ी लेकर कुंए की तरफ चल देता है तभी उदल मामा माहिल को देखकर मुस्कराने लगता है।
ऐ आस्तीन के सांप! जानता नहीं है ये उरई नगरी का राजा माहिल है
प्रणाम मामा श्री! उदल घोड़े से उतरकर बोलता है
नाम क्या है तुम्हारा? माहिल की आँखों में गुस्सा था
मै दसपुरवा महोबा का रहने वाला और माता देवल का पुत्र उदल बनाफल राय हूँ
इतना सुनते ही आँखों में अंगारे लिए माहिल गुस्से में कहता है अरे जो अपने बाप को बदला अब तक नहीं ले पाए वो क्या मुझे शौर्य दिखा रहे है जा पूछ जाकर अपनी माँ से कैसे तेरे पिता को रात में बंदी बनाकर तेरी माँ के सामने ले गए थे जा पूछ जाकर कैसे तेरे बाप को जम्बे ने कोल्हू में पिरवा दिया था और उनकी खोपड़ी अभी भी उनके बरगद के पेड़ो पर लटकी हुई है जिसपर करिया जुत्ते मारता है
इतना सुनते ही उदल की आँखों से आँशु आ जाते है और वह जाकर सीधा मामा माहिल के सामने खड़ा हो जाता है और कहता है –
बारह बरिस लै कूकर जीऐं ,औ तेरह लौ जिऐं सियार,
बरिस अठारह क्षत्रिय जिऐं ,आगे जीवन को धिक्कार।
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