Tuesday, 12 June 2018

सोचो अगर इस कायनात में wrote by Pawan Singh

सोचो अगर इस कायनात में
रात ना होती
पैसा कमाते फिर तुम सब
पर वो बात ना होती
अरे मशीन बन जाता वो आदम भी
और इंसानियत की भी फिर
शुरुआत ना होती
सोचो अगर इस कायनात में
रात ना होती.......2
सोचो अगर इस कायनात में
औरत ना होती
फिर उस आदम की भी कोई
मूरत ना होती
औरत है
तो तुम हो
वरना भगवान की भी इस ज़मी पर
कोई सूरत ना होती
सोचो अगर इस कायनात में
औरत ना होती........2

सोचो अगर इस कायनात में
प्यार न होता
कोई भी फिर किसी का यार ना होता
अरे नफरतों की आंधी में
 फिर जीते वो जिंदगी
खुदा को भी मानने को
फिर कोई तैयार ना होता
सोच अगर इस कायनात में
प्यार ना होता....2

सोचो अगर इस कायनात में
भगवान ना होता
धर्म मे बंटता किसीका ईमान ना होता
लेकिन कैसे जीते तुम
बिना किसी उम्मीद के
बिन खुदा के तो इस कायनात में
ये आदम-ए-इंसान ना होता
सोचो अगर इस कायनात में
भगवान में ना होता

Copyright ©
By Author Pawan Singh

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