Monday, 22 January 2018

कविता - वजूद खो दिया

कविता – वजूद खो दिया

आज में एक नए शहर में आया,  जिसमे मेरी कोई पहचान नही
लोगो से मिला बहुत , लेकिन किसी भी तरह का सम्मान नही
मतलब की है ये दुनिया जानकर , आज में रो दिया ...२
देखो जानब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२

आंखों में कुछ सपने थे मेरे , जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए..२
बड़े शहर में आया था , अपनी पहचान बताने के लिए
बिस्तर तो कंही मिला नही यंहा , तो जाकर फुटपाथ पर ही सो लिया
देखो जनाब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२

उम्र छोटी थी लेकिन मजबूत थे इरादे , सबसे की गुहार मैने ,करने पूरे अपने वादे
लोगो को दिखाई अपनी कला और जंजीरो को तोड़ दिया
देखो जनाब आज मैने , अपना वजूद खो दिया ...2

 मेरा सपना आज बिखर गया, शहरी पथराव में निखर गया...२
आज मेरा सपना भी , मेरी आंखों से ओझिल हो लिया
देखो जनाब आज मैंने , अपना वजूद खो दिया ...२

Write by
Author Pawan Singh


No comments:

Post a Comment

ब्लॉगिंग से पैसा कैसे कमाए

ब्लॉगिंग का मतलब क्या है? अपने विचारों, ज्ञान, अनुभव को एक वेबसाइट का रूप दे देना इसमें आप जिस काम मे अच्छे है वो कर सकते है जैसे की अगर ...