कविता – वजूद खो दिया
आज में एक नए शहर में आया, जिसमे मेरी कोई पहचान नही
लोगो से मिला बहुत , लेकिन किसी भी तरह का सम्मान नही
मतलब की है ये दुनिया जानकर , आज में रो दिया ...२
देखो जानब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२
आंखों में कुछ सपने थे मेरे , जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए..२
बड़े शहर में आया था , अपनी पहचान बताने के लिए
बिस्तर तो कंही मिला नही यंहा , तो जाकर फुटपाथ पर ही सो लिया
देखो जनाब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२
उम्र छोटी थी लेकिन मजबूत थे इरादे , सबसे की गुहार मैने ,करने पूरे अपने वादे
लोगो को दिखाई अपनी कला और जंजीरो को तोड़ दिया
देखो जनाब आज मैने , अपना वजूद खो दिया ...2
मेरा सपना आज बिखर गया, शहरी पथराव में निखर गया...२
आज मेरा सपना भी , मेरी आंखों से ओझिल हो लिया
देखो जनाब आज मैंने , अपना वजूद खो दिया ...२
Write by
Author Pawan Singh
आज में एक नए शहर में आया, जिसमे मेरी कोई पहचान नही
लोगो से मिला बहुत , लेकिन किसी भी तरह का सम्मान नही
मतलब की है ये दुनिया जानकर , आज में रो दिया ...२
देखो जानब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२
आंखों में कुछ सपने थे मेरे , जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए..२
बड़े शहर में आया था , अपनी पहचान बताने के लिए
बिस्तर तो कंही मिला नही यंहा , तो जाकर फुटपाथ पर ही सो लिया
देखो जनाब आज मैने, अपना वजूद खो दिया...२
उम्र छोटी थी लेकिन मजबूत थे इरादे , सबसे की गुहार मैने ,करने पूरे अपने वादे
लोगो को दिखाई अपनी कला और जंजीरो को तोड़ दिया
देखो जनाब आज मैने , अपना वजूद खो दिया ...2
मेरा सपना आज बिखर गया, शहरी पथराव में निखर गया...२
आज मेरा सपना भी , मेरी आंखों से ओझिल हो लिया
देखो जनाब आज मैंने , अपना वजूद खो दिया ...२
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