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कविता - कोरे पन्ने write by Garima Jahangirpuri

कविता - कोरे पन्नें.............

कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते है
किसी से न कहे थे जो
वो शब्द
इन पन्नों में बांध गए है,
महज पन्नें नहीं हैं ये
सदियों पुरानी कहानी कह देते हैं
इसलिए तो....
कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं।
महज़ किताबों के पन्नें ही नहीं
ज़िंदगी के पन्नें भी रोज़ पलटते हैं,
रोज़ कुछ नए, अनजाने चेहरे मिलते हैं
न वो याद रखते हैं, न हम उन्हें याद करते हैं
मिलकर आगे चल देते हैं,
और ज़िन्दगी के....
कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं।
जाने अनजाने चेहरे आस-पास रहते हैं
हँसी-ठाके उन्हीं के साथ करते हैं,
फिर क्यों?
उस भीड़ में भी हम अकेले रहते हैं,
और आखिर में....
कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं।
कुछ अनजान सहारे अपना हाल बता देते हैं
पल भर के लिए वे अपने रहते हैं
फिर जाने किस ओर रुख मूड लेते हैं,
भूल से याद आने पर
इन पन्नों पर ही वापस मिलते हैं,
तभी तो हम....
कोरे पन्नों पर अपने भाव उकेर देते हैं।

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