कविता – हाँ मै हवा हु
मै चंचल हु
मै स्थिर भी हुँ
मै दयावान के साथ
मै निष्ठुर भी हु
हल्का हु मै
भारी भी हु
इस कायनात की सारी कहानी भी हु
क्योंकि हाँ मै हवा हूँ ।
मेरा रूप विकट विशाल है
मेरे रूप में अनेको
मनुष्यो का जाल है।
मेरा ही अंश था भीम - महान
और लंका को जलाने वाला
मेरा वीर पुत्र हनुमान
तेरे जीवन का सार मै हु
तेरी सांसो का मायाजाल मै हु
क्योंकि हाँ मै हवा हु
पवन मै हु
समीर मै हु
नदी किनारे दोहे गावत
कबीर मै हु
युद्ध मे लड़ने वाला वो वीर मै हु
प्रेमी को प्रेमिका से बाँधने वाला
वो प्रेम तीर में हु
हाँ मै हवा हु
तेरी बढ़ती सोच मै हु
हिमालय पर लगी खरोंच मै हु
गीता का ज्ञान मै हु
नवजात शिशु सा अज्ञान मै हु
माँ की ममता का आँचल मै हु
गंगा के पवित्र जल सा
निश्छल मै हु
हाँ मै हवा हु
पूर्व मै हु पश्चिम मै हु
उत्तर मै हु दक्षिण मै हु
अशोक का बढ़ता सम्मान मै हु
उस चाणक्य नीति का अभिमान मै हु
वीर महाराणा का चेतक मै हु
कृष्ण के चरणों की मस्तक मै हु
संसार में दहाड़ता सिन्ध मै हु
विश्वगुरु बनता हिन्द मै हु
हाँ मै हवा हु
सभी व्यख्यान की परिभाषा मै हु
गरीब के अंदर बसी वो आशा मै हु
संसार में फैलती रुमानियत मै हु
सभी धर्मों में बसी इंसानियत मै हु
हाँ मै हवा हु
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Author Pawan Singh Sikarwar
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