"क्योँ दहेज हैं समाज मे लालच का मैल,
जिसके साथ मनुष्य खेल रहा हैं खेल,
पीस रही उस खेल मे नारी बिचारी,
जिसके साथ बरती जा रही अत्याचारी,
सपने सजाती गुलाब के फूल से,
हो जाते खोखले दीमक के मैल से,
क्योँ दहेज हैं समाज मे लालच का मैल !!!
शादी के नाम घर से होती हैं बिदाई,
ससुराल वाले कहे घर मे बहू हैं आई,
सपने संजोती भविष्य मे पति के प्यार के,
मिल जाते अत्याचार थपड़ों की पुकार से,
क्योँ दहेज हैं समाज मे लालच का मैल !!!
तेजाब, केरोसिन बिक रहा बाजार मे खुलेआम,
जो छिड़का जा रहा नारियों पर बे-लगाम,
रोको टोको कोई तो इन दरिंदो को दोस्तों,
क्या कोई नहीं जीवन मे उनका मोल,
क्योँ दहेज हैं समाज मे लालच का मैल !!!!
यदि छोड़ सब कुछ आ जाए घर अपने,
तो समाज ताने दे दे जीने नहीं देता,
चेहरा छुपाए घूमे उस काबिल तक नहीं छोड़ता,
क्या यही तक सिमित हैं नारियों का अभिमान,
क्योँ दहेज हैं समाज मे लालच का मैल !!!!
पैसे की लक्ष्मी की माँग छोड़,
कर लो घर की लक्ष्मी का सम्मान,
साथ ही साथ देश का ना होगा अपमान,
फिर हर कोई कहेगा क्या,
दहेज नहीं समाज मे लालच का मैल !!!!
@ Nitin Agarwal
From- आगरा (City of love)....
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