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I am indian poem by Author Pawan Sikarwar

मै हु हिन्दुस्तानी,
जानी, पहचानी और मानी सारी बात तेरी
सभ्य बनाया तुमने लेकिन,
सबसे पुरानी सभ्यता मेरी
जो तुम समझो हमको,
हम अनपढ़ गंवार है
दुनिया हिलाने को देखो,
अब हम तैयार है
शांति की कविता है बाबू,
ये कोई दंगल नही है
शेर बनकर हम दुनिया को खा जाए,
लेकिन ये दुनिया है कोई जंगल नही है
क्योकि
मै हु हिंदुस्तानी,
जानी, पहचानी और मानी सारी बात तेरी
सभ्य बनाया तुमने लेकिन,
सबसे पुरानी सभ्यता मेरी

अब टाटा - अम्बानी से,
ये जलने लगे है
बॉलीवुड की कमाई के शोर,
इन्हें खलने लगे है
बड़े पर्दे की देखो हम,
पिक्चर बना रहे
ये लोग अपने हाँथ,
अब मसलने लगे है
ऐसे ही आगे हम,
 बढ़ते ही जायेंगे
एशिया में नही,
पूरी दुनिया मे छाएंगे
नासा के साइंटिस्ट,
अब इसरो में आएंगे
पूरी दुनिया वाले,
एक दिन अपना तिरंगा फेरायेंगे
क्योकि
 मै हु हिंदुस्तानी,
जानी, पहचानी और मानी सारी बात तेरी
सभ्य बनाया तुमने लेकिन,
सबसे पुरानी सभ्यता मेरी

हारने लगे हो तो,
नम्बर तुम गिनवा रहे
तीसरे नंबर की सेना हमारी,
कान तुम्हारे खुलवा रहे
लड़ने पर आ जाये तो,
अकेले हम सबपर भारी है
बाबू अपनी चोत्तीस करोड़ जनसँख्या है,
और तुम अब तक पड़ोस से मंगवा रहे
तुम अपनी धुलवा रहे, सुलगा रहे,
और जो तुम्हारी सर्जिकल स्ट्राइक में फाड़ी थी ना
उसको अब तक तुम सिलवा रहे
क्योकि
 मै हु हिंदुस्तानी,
जानी, पहचानी और मानी सारी बात तेरी
सभ्य बनाया तुमने लेकिन,
सबसे पुरानी सभ्यता मेरी

दुनिया वालो हमने तुमको
संस्कृत से भाषा का ज्ञान दिया
ब्लैकहोल की गणना करके
अंतरिक्ष का विज्ञान दिया
जो चाल चल रहे हो ना
तुम हमसे बाबू
भूलो मत शतरंज का,
किसने आविष्कार किया
तुमने त्रिस्कार किया,
हमने स्वीकार किया
तुम तो बस छोटे रह गए,
लेकिन हमने अपना विस्तार किया
क्योकि
मै हु हिंदुस्तानी,
जानी, पहचानी और मानी सारी बात तेरी
सभ्य बनाया तुमने लेकिन,
सबसे पुरानी सभ्यता मेरी

लेखक - पवन सिंह सिकरवार

copyright reserved
by Sikho foundation

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