“वो मुझसे ही मेरी
तारीफ करने में शर्माती है
अरे मै ही तो हु
फिर क्यों इतना घबराती है
अगर इश्क को गुमनाम रखना है
तो चल रख ले
नजरे झुकाकर क्यों फिर
अपनी झुलफो को सुलझाती है
मै, मै नहीं तेरा आइना हूँ,
फिर क्यों खुद से खुद की
तारीफ करने में इतराती है
चल मै ही कह देता हु
तेरी तारीफ में दो लफ्ज
तू तो वो खुदा ए इश्क है
जो मुझे मेरी दुआ में पढाई जाती है
writer - author pawan singh
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