प्रगति के पथ पर इंसान कब रुका है?
पर न जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है
जिस लट्टू को सारा दिन घुमाते न थकते थे आंगन में,
जिस मिट्टी में सारा दिन कभी कबड्डी खेली है,
वह लट्टू हो गया लुप्त आ गए फिजित स्पिनर हाथों में,
मिट्टी में कबड्डी की जगह मोबाइल की पब्जी ने ले ली है
जिस चबूतरे पर बैठकर देर तक बातें किया करते थे,
घंटों जहां दोस्तों के साथ कभी टाइम पास किया है,
अब वहां महफिले नहीं सजती , सजता है तो सन्नाटा,
व्हाट्सएप में ग्रुप वीडियो कॉल का फीचर जो दिया है
याद शक्ति कम हो गई धीरे-धीरे इंसानों की,
फोन में जो सारी यादों को संजो कर रखा है,
प्रगति के पथ पर इंसान कब रुका है?
पर ना जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है.
लेखक - जुनैद वोहरा
निवास - गुजरात
पर न जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है
जिस लट्टू को सारा दिन घुमाते न थकते थे आंगन में,
जिस मिट्टी में सारा दिन कभी कबड्डी खेली है,
वह लट्टू हो गया लुप्त आ गए फिजित स्पिनर हाथों में,
मिट्टी में कबड्डी की जगह मोबाइल की पब्जी ने ले ली है
जिस चबूतरे पर बैठकर देर तक बातें किया करते थे,
घंटों जहां दोस्तों के साथ कभी टाइम पास किया है,
अब वहां महफिले नहीं सजती , सजता है तो सन्नाटा,
व्हाट्सएप में ग्रुप वीडियो कॉल का फीचर जो दिया है
याद शक्ति कम हो गई धीरे-धीरे इंसानों की,
फोन में जो सारी यादों को संजो कर रखा है,
प्रगति के पथ पर इंसान कब रुका है?
पर ना जाने क्यों इस दौड़ में जीना ही भूल चुका है.
लेखक - जुनैद वोहरा
निवास - गुजरात